महान पराक्रमी योद्धा श्रीमंत बाजीराव बल्लाल भट्ट पेशवा की जयंती पर अर्पित किए श्रद्धा सुमन, दद्दा धाम कालोनी में हुआ आयोजन

महान पराक्रमी योद्धा श्रीमंत बाजीराव बल्लाल भट्ट पेशवा की जयंती पर अर्पित किए श्रद्धा सुमन, दद्दा धाम कालोनी में हुआ आयोजन

कटनी। महान पराक्रमी योद्धा, हिन्दवी स्वराज्य के अद्वितीय सेनानी और भारतभूमि के गौरवशाली नायक श्रीमंत बाजीराव बल्लाल भट्ट पेशवा की जन्मजयंती के पावन अवसर पर दद्दाधाम कॉलोनी, झिंझरी (कटनी) में अत्यन्त श्रद्धा, भक्ति और उत्साह के साथ मनाया गया। इस अवसर पर माधवेंद्र सिंह के निवास पर एक गरिमामय आयोजन संपन्न हुआ। कार्यक्रम में कॉलोनी के अनेक गणमान्य नागरिक, समाजसेवी एवं बुद्धिजीवी उपस्थित हुए और उन्होंने श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए राष्ट्रनायक के चरणों में नमन किया।
इस अवसर पर रेलवे के सेवानिवृत्त उपमुख्य अभियंता एस. पी. तिवारी ने अपने वक्तव्य में श्रीमंत बाजीराव पेशवा के जीवन की गौरवगाथा सुनाते हुए कहा कि बाजीराव केवल मराठा साम्राज्य के सेनानी ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण भारत के सांस्कृतिक अस्मिता के रक्षक और सभ्यता-संघर्ष के प्रहरी थे। उन्होंने बताया कि जब बुंदेलखंड के महाराजा छत्रसाल मुग़ल सरदार मोहम्मद खान बंगश से घिरे और संकटग्रस्त हुए, तब उन्होंने बाजीराव को संदेश भेजा। बाजीराव उस समय भोजन कर रहे थे। उन्होंने तुरंत कहा— “यदि मुझे पहुँचने में देर हो गई, तो इतिहास लिखेगा कि एक राजपूत ने मदद माँगी और ब्राह्मण भोजन करता रहा।” यह कहते ही उन्होंने थाली छोड़ दी और अपनी सेना सहित बिजली की गति से छत्रसाल की सहायता को निकल पड़े। इस अद्भुत सहयोग ने न केवल बुंदेलखंड को मुग़ल अत्याचार से मुक्त किया, बल्कि इतिहास में मराठा-बुंदेला मैत्री को अमर कर दिया। धरती के महानतम योद्धाओं में से एक, अद्वितीय, अपराजेय और अनुपम सेनानी थे श्रीमंत बाजीराव बल्लाल। उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज के “हिन्दवी स्वराज” के उस स्वप्न को साकार कर दिखाया, जिसका परचम अटक से कटक और कन्याकुमारी से सागरमाथा तक लहराया। इतिहास में अंकित घटनाओं में एक यह भी है कि बाजीराव ने पाँच सौ घोड़ों के साथ मात्र 48 घंटे में दस दिनों की दूरी तय की, बिना रुके और बिना थके। आज तक भारतीय इतिहास में ऐसे तेज अभियान केवल दो ही दर्ज हुए हैं। एक, अकबर का फतेहपुर से गुजरात पहुँचकर नौ दिनों में विद्रोह को दबाना, और दूसरा, बाजीराव का दिल्ली पर आक्रमण। सन् 1737 में बाजीराव दिल्ली तक चढ़ आए। आज जहाँ तालकटोरा स्टेडियम है, वहाँ उन्होंने अपना डेरा डाला। केवल उन्नीस-बीस वर्ष की अवस्था में उन्होंने मुग़ल साम्राज्य की जड़ों को हिला दिया और दिल्ली को अपने पराक्रम से काँपने पर विवश कर दिया। तीन दिन तक उन्होंने दिल्ली को घेर रखा। मुग़ल बादशाह लाल किले से बाहर निकलने का साहस न कर सका और गुप्त तहखाने में छिपा रहा। यह उस समय की वास्तविकता थी कि मुग़ल सत्ता का साम्राज्य सीमित और क्षीण हो चुका था और हिन्दवी स्वराज्य का सूर्य उदित हो रहा था। भारत के इतिहास में श्रीमंत बाजीराव बल्लाल अकेले ऐसे योद्धा थे, जिन्होंने मात्र 40 वर्ष की आयु में 42 बड़े युद्ध लड़े और उनमें से एक भी युद्ध नहीं हारे। वे वास्तव में अपराजेय, अद्वितीय और अनुपम सेनानी थे।
कार्यक्रम के अंत में उपस्थित सभी नागरिकों ने इस गौरवगाथा से प्रेरणा लेकर यह संकल्प किया कि हम सब मिलकर राष्ट्र, संस्कृति और सभ्यता की रक्षा तथा संवर्धन हेतु सदैव तत्पर रहेंगे। कार्यक्रम में मुख्य रूप से माधवेंद्र सिंह गौतम, आकाश श्रीवास्तव, पत्रकार संजीव वर्मा, शैलेश त्रिपाठी, अरविंद गुप्ता, आशीष पटेल, अमोल प्रसाद पाठक, एसपी तिवारी, दीपक कुमार द्विवेदी सहित अन्य गणमान्य जन्म मौजूद रहे।

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Author: RashtraRakshak

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