नाम की यातयात सुरक्षा चौकी, न थमे हादसे न रुका मौतों का सिलसिला, मददगार का चोला ओढ कर वसूली का खेला, दो भीषड़ हादसों में तीन मौतों ने शहर को झकझोरा

नाम की यातयात सुरक्षा चौकी, न थमे हादसे न रुका मौतों का सिलसिला, मददगार का चोला ओढ कर वसूली का खेला, दो भीषड़ हादसों में तीन मौतों ने शहर को झकझोरा

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कटनी। पुलिस मुख्यालय की मंशा के अनुसार राष्ट्रीय राजमार्ग पर होने वाले सड़क हादसों को रोकने के लिए जिन मददगारों को तैनात किया गया क्या वे मददगार मुख्यालय की मंशा के अनुरूप कार्य कर पाने में क्या सफल हुए यह सवाल बीते दिनों हुए दो भीषण हादसों में तीन मौतों के बाद फिर ताजा हो गया है। सड़क हादसे में तीन लोगों की असमय जान चले जाने और दो लोगों के गंभीर रूप से घायल हो जाने के बावजूद यहां मौजूद सुरक्षा चौकी में कुछ भी नहीं बदला। जुहला हाईवे सुरक्षा चौकी की स्थापना जिस उद्देश्य को लेकर की गई वह उद्देश्य तो पूरा नहीं हुआ लेकिन यहां पर एक दूसरा ही खेल शुरू हो गया। मदद के नाम पर इतना जरूर हुआ कि सड़क हादसे में मरने वालों और घायल होने वालों को उठाकर अस्पताल भिजवाया जाने लगा। इस तरह की सुरक्षा और मदद को देख कर तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे सुरक्षा चौकी जब नहीं थी तब शायद यहां पर होने वाले हादसों के घायल अस्पताल पहुंच ही नहीं पाते थे या फिर मौतों के बाद उनके शव को पोस्टमार्टम घर तक भिजवाया ही नहीं जाता था। खैर छोड़िए इन हालातो में बदलाव की अपेक्षा बेमायने है।

सब भगवान भरोसे

सुरक्षा के नाम पर जूहला हाईवे सुरक्षा चौकी में एक टुकड़ी को तैनात किया गया। तैनात टुकड़ी ने सुरक्षा के लिहाज से अब तक क्या किया यह तो पता नहीं लेकिन यहां से होने वाली अवैध वसूली और वाहन चालकों के साथ बदसलूकी को पूरा शहर जान चुका है। कार्यशैली ऐसी की सब कुछ भगवान भरोसे जान पड़ता है।

संगठित वसूली का अड्डा

सुरक्षा के लिए तैनात की गई टुकड़ी ने सुरक्षा के दृष्टिकोण से कुछ किया हो या फिर न किया हो लेकिन बीते दिनों चौकी को संगठित वसूली का अड्डा जरूर बड़ी कामयाबी से बना दिया। लगातार चौकी से होने वाली वसूली की खबरें सामने आने के बाद बाकायदा चौकी के कर्मचारियों के द्वारा सोशल मीडिया पर ऐसी खबरें प्रसारित करवाई गई जैसे उनसे बड़ा मददगार धरती पर कोई और है ही नहीं।  खुद को देवदूत साबित करने में जुटे चौकी के कर्मचारी क्या अपनी जिम्मेदारी को ठीक तरह से पूरा कर रहे हैं या फिर जिम्मेदारी की आड़ में कुछ और ही गुल खिला रहे हैं इसकी जांच विभागीय के वरिष्ठ अधिकारियों को एक बार अवश्य करनी चाहिए। कागजी घोड़े दौड़ाने के बजाय बिगड़े हालातो को सुधारने के लिए ठोस कदम उठाए जाने आवश्यक हैं।

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