????तबाही ही तबाही????
आसमान से बरस रहा कहर, खरीदी केंद्रों में तबाही का मंजर, झमाझम बरसात ने कई केंद्रों को किया जलमग्न, किसानों के साथ-साथ शासन की भी लाखों क्विंटल धान पानी पानी, अभी मौसम और दिखाएगा बेरुखी

कटनी(सुजीत सिंह)। महीनों की कड़ी मशक्कत और तपस्या के बाद मौसम की मार झेलते हुए किसान ने जो फसल तैयार की आज वह मेहनत प्रकृति के कहर की भेंट चढ़ गई। शुक्रवार देर शाम से जिले में लगातार जारी बरसात के कारण खरीदी केंद्रों में पड़ी किसानों एवं शासन की धान पानी की भेंट चढ़ गई। जिले के सभी तहसीलों से सामने आ रही तस्वीरें बयां करती है कि आसमानी आफत ने किस तरह तबाही मचाई है। लगातार बारिश के कारण कई केंद्र तालाब जैसे प्रतीत होने लगे हैं। कहीं पर किसान की खुली पड़ी धान पूरी भीगी दिख रही है तो कहीं शासन की खरीदी हुई बोरे में रखी धान पानी से तरबतर नजर आ रही है। आसमान से बरस रही तबाही अभी दो दिन तक और जारी रहने का अंदेशा मौसम विभाग जाता रहा है। यदि इसी तरह प्रकृति का कहर बरसता रहा और केंद्रों में उचित व्यवस्था नहीं की गई तो फिर बेचारे किसान की कमर टूटना तय है।
जलमग्न हुए केंद्र
सूत्रों के मुताबिक कटनी, रीठी, बहोरीबंद, बड़वारा, विजयराघवगढ़, ढीमरखेड़ा, उमरियापान, बरही, कैमोर सहित जिले भर में मौजूद दो दर्जन से अधिक केंद्र ऐसे हैं जहां पर लगातार हो रही बारिश के कारण भारी अव्यवस्था उत्पन्न हो गई है। केंद्र प्रभारियों द्वारा बरसात से बचने के लिए उचित व्यवस्था नहीं किए जाने के कारण लाखों क्विंटल धान पानी पानी हो चुकी है। अधिकतर केंद्रों में शेड की व्यवस्था नहीं है और जमीन पर धान की छल्लियाँ लगी हुई है। कई जगह पर लगातार बारिश के कारण दलदल जैसी स्थिति निर्मित है।
रो रहा किसान
किसान रमेश यादव, सत्येंद्र गुप्ता, अविनाश द्विवेदी सहित दो दर्जन से भी अधिक किसानों ने राष्ट्र रक्षक न्यूज़ चैनल से बात करते हुए कहा कि उनके द्वारा कमर तोड़ मेहनत करने के बाद जो धान की उपज तैयार की गई थी उसका विक्रय करने के लिए वे एक-दो दिन से केंद्र में इंतजार कर रहे थे। उन्होंने अपनी तरफ से धान की सुरक्षा के जो संभव हो सकते वह इंतजाम किए गए। केंद्रों के तरफ से कोई सुविधा उपलब्ध नहीं कराई गई। उनकी उपज की तुलाई अभी होना बाकी थी। खुले में धान का ढेर लगा होने के कारण पूरी की पूरी फसल पानी से तरबतर हो गई। अपनी पीड़ा बताते हुए किसानों का गला भर आया और डबडबाती आंखों से वह अपनी बर्बाद होती फसल को एक टक निहारत रहे।
????तबाही ही तबाही????
आसमान से बरस रहा कहर, खरीदी केंद्रों में तबाही का मंजर, झमाझम बरसात ने कई केंद्रों को किया जलमग्न, किसानों के साथ-साथ शासन की भी लाखों क्विंटल धान पानी पानी, अभी मौसम और दिखाएगा बेरुखी
कटनी(सुजीत सिंह)। महीनों की कड़ी मशक्कत और तपस्या के बाद मौसम की मार झेलते हुए किसान ने जो फसल तैयार की आज वह मेहनत प्रकृति के कहर की भेंट चढ़ गई। शुक्रवार देर शाम से जिले में लगातार जारी बरसात के कारण खरीदी केंद्रों में पड़ी किसानों एवं शासन की धान पानी की भेंट चढ़ गई। जिले के सभी तहसीलों से सामने आ रही तस्वीरें बयां करती है कि आसमानी आफत ने किस तरह तबाही मचाई है। लगातार बारिश के कारण कई केंद्र तालाब जैसे प्रतीत होने लगे हैं। कहीं पर किसान की खुली पड़ी धान पूरी भीगी दिख रही है तो कहीं शासन की खरीदी हुई बोरे में रखी धान पानी से तरबतर नजर आ रही है। आसमान से बरस रही तबाही अभी दो दिन तक और जारी रहने का अंदेशा मौसम विभाग जाता रहा है। यदि इसी तरह प्रकृति का कहर बरसता रहा और केंद्रों में उचित व्यवस्था नहीं की गई तो फिर बेचारे किसान की कमर टूटना तय है।
जलमग्न हुए केंद्र
सूत्रों के मुताबिक कटनी, रीठी, बहोरीबंद, बड़वारा, विजयराघवगढ़, ढीमरखेड़ा, उमरियापान, बरही, कैमोर सहित जिले भर में मौजूद दो दर्जन से अधिक केंद्र ऐसे हैं जहां पर लगातार हो रही बारिश के कारण भारी अव्यवस्था उत्पन्न हो गई है। केंद्र प्रभारियों द्वारा बरसात से बचने के लिए उचित व्यवस्था नहीं किए जाने के कारण लाखों क्विंटल धान पानी पानी हो चुकी है। अधिकतर केंद्रों में शेड की व्यवस्था नहीं है और जमीन पर धान की छल्लियाँ लगी हुई है। कई जगह पर लगातार बारिश के कारण दलदल जैसी स्थिति निर्मित है।
रो रहा किसान
किसान रमेश यादव, सत्येंद्र गुप्ता, अविनाश द्विवेदी सहित दो दर्जन से भी अधिक किसानों ने राष्ट्र रक्षक न्यूज़ चैनल से बात करते हुए कहा कि उनके द्वारा कमर तोड़ मेहनत करने के बाद जो धान की उपज तैयार की गई थी उसका विक्रय करने के लिए वे एक-दो दिन से केंद्र में इंतजार कर रहे थे। उन्होंने अपनी तरफ से धान की सुरक्षा के जो संभव हो सकते वह इंतजाम किए गए। केंद्रों के तरफ से कोई सुविधा उपलब्ध नहीं कराई गई। उनकी उपज की तुलाई अभी होना बाकी थी। खुले में धान का ढेर लगा होने के कारण पूरी की पूरी फसल पानी से तरबतर हो गई। अपनी पीड़ा बताते हुए किसानों का गला भर आया और डबडबाती आंखों से वह अपनी बर्बाद होती फसल को एक टक निहारत रहे।