????बेचारी पुलिस????? न घर की न घाट की, कभी पिटती कभी गाली खाती, एक गाड़ी पकड़ ले तो रहनुमाओं की धमकियां सुनती, मोहन की बंसी की तरह बजने लगी पुलिस, क्या आम जन के लिए है पुलिस

????बेचारी पुलिस?????

न घर की न घाट की, कभी पिटती कभी गाली खाती, एक गाड़ी पकड़ ले तो रहनुमाओं की धमकियां सुनती, मोहन की बंसी की तरह बजने लगी पुलिस, क्या आम जन के लिए है पुलिस

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कटनी। वर्तमान में पुलिस के हाल बेहाल कहे जा सकते हैं। कभी अपराधिक तत्वों से मार खाती है पुलिस, तो कभी नेताओं से थाने के अंदर गालियां सुनती है पुलिस। कानून व्यवस्था को दुरुस्त रखें भी तो कैसे वाहन चेकिंग करते हुए अगर बिना दस्तावेज किसी को पकड़ ले तो एक दर्जन रहनुमा खुद को नेता बता कर पुलिस पर ही बरस पढ़ते हैं। तो क्या पुलिस मोहन की बंसी बन गई है, जब जिसका दिल करे, जैसे दिल करे वैसे बजा दे। अब क्या पुलिस केवल गरीबों लाचारों और आम लोगों पर सख्त तेवर दिखाने के लिए ही बची है। यह सवाल बीते दिनों हुए घटनाक्रमों के बाद उठना लाजमी है। वर्तमान हालात तो ऐसे हैं कि पुलिस अपना रोना रोए भी तो किससे। इधर कुआं उधर खाई। कभी अधिकारी तो कभी नेता, छोटे पुलिसकर्मियों को निशाना बनाते रहते हैं। जो पुलिस अपनी सुरक्षा नहीं कर पा रही क्या ऐसी पुलिस आमजन की सुरक्षा कर पाएगी। और क्या दिन देखना बाकी हैं। आगे और क्या-क्या देखना होगा, यह तो वक्त बताएगा। लेकिन जो कुछ हो रहा है, वह समाज के लिए ठीक तो नहीं कहा जा सकता।

क्या इसी दिन के लिए था चुना

वर्तमान प्रदेश सरकार के राज में आम जन तो छोड़िए वह तो परेशान है ही, अब आमजन की सुरक्षा के लिए तैनात पुलिस भी सुरक्षित नहीं दिख रही। लगातार बिगड़ते कानून व्यवस्था के हाल को देखकर आम वोटर तो यही सोच रहा है की क्या इसी दिन के लिए भाजपा सरकार को वोट देकर चुना था। लगातार हो रही घटनाएं चीख चीख कर यह बता रही है कि कानून व्यवस्था पूरी तरह चरमरा चुकी है। पुलिस के हाल देखकर तो ऐसा प्रतीत होने लगा है जैसे पुलिस किसी कठपुतली से कम नहीं। जिसकी बागडोर सत्ता पक्ष के हाथ में है सत्ता पक्ष जैसा चाहे वैसा पुलिस को नचा रहा है।

तेजी से बढ़ रहे अपराध

इसे सत्ता पक्ष का दबाव कहें या फिर कुछ और लेकिन अपराधों का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है। युवा नशे की गिरफ्त में है और अपराधों की तरफ रुख कर रहा है। पीड़ित आमजन अपनी छोटी-छोटी परेशानियों के लिए अधिकारियों के चक्कर काटते फिर रहे हैं। सुरक्षा व्यवस्था के हाल ऐसे हैं कि शहर में निकलकर सुरक्षित अगर घर पहुंच जाएं तो भगवान का शुक्र मनाते हैं। अपराधी सड़कों पर बेखौफ घूमते हुए वारदातों को अंजाम देते हैं। गली गली चौराहे चौराहे अवैध शराब और नशे का कारोबार धड़ल्ले से फल फूल रहा है। क्या यही है सुशासन और क्या यही है मोहन राज। आज यह बात हर किसी के सामने सबसे बड़ा सवाल बनकर खड़ा है।

????बेचारी पुलिस?????
न घर की न घाट की, कभी पिटती कभी गाली खाती, एक गाड़ी पकड़ ले तो रहनुमाओं की धमकियां सुनती, मोहन की बंसी की तरह बजने लगी पुलिस, क्या आम जन के लिए है पुलिस

कटनी। वर्तमान में पुलिस के हाल बेहाल कहे जा सकते हैं। कभी अपराधिक तत्वों से मार खाती है पुलिस, तो कभी नेताओं से थाने के अंदर गालियां सुनती है पुलिस। कानून व्यवस्था को दुरुस्त रखें भी तो कैसे वाहन चेकिंग करते हुए अगर बिना दस्तावेज किसी को पकड़ ले तो एक दर्जन रहनुमा खुद को नेता बता कर पुलिस पर ही बरस पढ़ते हैं। तो क्या पुलिस मोहन की बंसी बन गई है, जब जिसका दिल करे, जैसे दिल करे वैसे बजा दे। अब क्या पुलिस केवल गरीबों लाचारों और आम लोगों पर सख्त तेवर दिखाने के लिए ही बची है। यह सवाल बीते दिनों हुए घटनाक्रमों के बाद उठना लाजमी है। वर्तमान हालात तो ऐसे हैं कि पुलिस अपना रोना रोए भी तो किससे। इधर कुआं उधर खाई। कभी अधिकारी तो कभी नेता, छोटे पुलिसकर्मियों को निशाना बनाते रहते हैं। जो पुलिस अपनी सुरक्षा नहीं कर पा रही क्या ऐसी पुलिस आमजन की सुरक्षा कर पाएगी। और क्या दिन देखना बाकी हैं। आगे और क्या-क्या देखना होगा, यह तो वक्त बताएगा। लेकिन जो कुछ हो रहा है, वह समाज के लिए ठीक तो नहीं कहा जा सकता।
क्या इसी दिन के लिए था चुना
वर्तमान प्रदेश सरकार के राज में आम जन तो छोड़िए वह तो परेशान है ही, अब आमजन की सुरक्षा के लिए तैनात पुलिस भी सुरक्षित नहीं दिख रही। लगातार बिगड़ते कानून व्यवस्था के हाल को देखकर आम वोटर तो यही सोच रहा है की क्या इसी दिन के लिए भाजपा सरकार को वोट देकर चुना था। लगातार हो रही घटनाएं चीख चीख कर यह बता रही है कि कानून व्यवस्था पूरी तरह चरमरा चुकी है। पुलिस के हाल देखकर तो ऐसा प्रतीत होने लगा है जैसे पुलिस किसी कठपुतली से कम नहीं। जिसकी बागडोर सत्ता पक्ष के हाथ में है सत्ता पक्ष जैसा चाहे वैसा पुलिस को नचा रहा है।
तेजी से बढ़ रहे अपराध
इसे सत्ता पक्ष का दबाव कहें या फिर कुछ और लेकिन अपराधों का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है। युवा नशे की गिरफ्त में है और अपराधों की तरफ रुख कर रहा है। पीड़ित आमजन अपनी छोटी-छोटी परेशानियों के लिए अधिकारियों के चक्कर काटते फिर रहे हैं। सुरक्षा व्यवस्था के हाल ऐसे हैं कि शहर में निकलकर सुरक्षित अगर घर पहुंच जाएं तो भगवान का शुक्र मनाते हैं। अपराधी सड़कों पर बेखौफ घूमते हुए वारदातों को अंजाम देते हैं। गली गली चौराहे चौराहे अवैध शराब और नशे का कारोबार धड़ल्ले से फल फूल रहा है। क्या यही है सुशासन और क्या यही है मोहन राज। आज यह बात हर किसी के सामने सबसे बड़ा सवाल बनकर खड़ा है।

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Author: RashtraRakshak

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